No Funds for Treatment: सरायकेला, घायल पुलिसकर्मियों के इलाज के लिए चंदा जुटाने पर मजबूर जवान
No Funds for Treatment: सरायकेला, घायल पुलिसकर्मियों के इलाज के लिए चंदा जुटाने पर मजबूर जवान

No Funds for Treatment: सरायकेला हादसे में घायल पुलिसकर्मी इलाज के लिए पैसे जुटाने को मजबूर


सरायकेला
में 21 अगस्त की रात हुई एक दुर्घटना में घायल हुए पुलिसकर्मियों के इलाज के लिए आर्थिक संकट गहरा गया है। यह घटना तब हुई जब पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के एस्कॉर्ट में शामिल पुलिसकर्मी ड्यूटी के बाद लौट रहे थे। हादसे में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई, जबकि तीन अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। अब इन घायल जवानों का इलाज कराने के लिए उनके साथी पुलिसकर्मी चंदा जुटा रहे हैं, क्योंकि अस्पताल प्रबंधन ने पैसे के अभाव में इलाज करने से इनकार कर दिया है।

दुर्घटना तब हुई जब पूर्व मुख्यमंत्री को उनके आवास छोड़कर पुलिसकर्मी पुलिस लाइन लौट रहे थे। मुख्य मार्ग पर गुडिया के पास एस्कॉर्ट गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जिससे चालक विनय कुमार बानसिंह की मौत हो गई और तीन पुलिसकर्मी, सिलास विल्सन लकड़ा, दयाल गहतो, और हवलदार हरीश लागुरी, गंभीर रूप से घायल हो गए। घायल पुलिसकर्मियों के पास इलाज के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे, जिसके कारण उनके साथी पुलिसकर्मी चंदा इकट्ठा कर रहे हैं ताकि इलाज हो सके।

मेडिकल एलाउंस और इंश्योरेंस का संकट ?

सूत्रों के अनुसार, झारखंड के पुलिसकर्मियों को मेडिकल एलाउंस के नाम पर महज 1000 रुपये मिलते हैं, जो जरूरतों के हिसाब से बेहद कम है। राज्य सरकार द्वारा सभी पुलिसकर्मियों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस की योजना बनाई गई थी, लेकिन वित्तीय कठिनाइयों के कारण कोई भी इंश्योरेंस कंपनी इस बीमा को करने के लिए तैयार नहीं हुई। परिणामस्वरूप, यह प्रस्ताव अभी तक अधर में है।

कुछ पुलिसकर्मियों ने गुमनाम रहने की शर्त पर बताया कि उन्हें मेडिकल सुविधाओं के नाम पर कोई विशेष लाभ नहीं मिलता, जबकि वे 24 घंटे ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार उन्हें 1000 रुपये के बजाय 3000 रुपये प्रति माह मेडिकल एलाउंस दे, तो वे खुद अपना हेल्थ इंश्योरेंस करवा सकते हैं। यह मामला पुलिस यूनियन द्वारा कई बार सरकार के समक्ष रखा गया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।

इस दुर्घटना ने झारखंड में पुलिसकर्मियों की स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविक स्थिति को उजागर किया है। राज्य सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है ताकि भविष्य में पुलिसकर्मियों को इस प्रकार की कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।

 

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