शुक्रवार को झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया, जब पूर्व मुख्यमंत्री और हेमंत सरकार के कैबिनेट मंत्री चंपाई सोरेन ने औपचारिक रूप से बीजेपी का सदस्यता ग्रहण किया। इसके जवाब में, CM हेमंत सोरेन ने घाटशिला के विधायक रामदास सोरेन को मंत्री बनाया। रांची राजभवन में, सुबह लगभग 11:00 बजे राज्यपाल संतोष गंगवार ने रामदास सोरेन को मंत्री पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। अब, चंपाई सोरेन “भाजपाई” के रूप में और रामदास सोरेन झारखंड सरकार के मंत्री के रूप में कार्य करेंगे। रामदास सोरेन को उच्च शिक्षा मंत्री की पोर्टफोलियो सौंपी गई है।
अब जानते हैं कि चंपाई सोरेन के स्थान पर रामदास सोरेन को मंत्री क्यों बनाया गया, और इस निर्णय के पीछे की रणनीतियों और Inside story को समझने की कोशिश करते हैं|
- चंपाई और रामदास के बीच मनमुटाव
चंपाई सोरेन और रामदास सोरेन के बीच लगभग एक दशक से मनमुटाव होने की बातें बताई जाती हैं, हालांकि हम इसकी खुले तौर पर पुष्टि नहीं कर रहे। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के अंदरूनी विवाद समय-समय पर सामने आते रहे हैं, जो पार्टी के भीतर शक्ति-संघर्ष को दर्शाते हैं। इस लंबे समय के विवाद ने पार्टी की रणनीति और निर्णयों को प्रभावित किया है।
- बाबूलाल सोरेन की भूमिका
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के पुत्र Babulal Soren घाटशिला विधानसभा क्षेत्र से खुद को प्रत्याशी के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे थे, ताकि रामदास सोरेन को ‘हराया’ जा सके। इस रणनीति से पार्टी के अंदरूनी गतिरोध और दो गुटों के मध्य विवाद भी उजागर हुए हैं।
- आदिवासी के बदले आदिवासी प्रतिनिधित्व
रामदास सोरेन को मंत्री बनाने का एक प्रमुख कारण आदिवासी समुदाय को प्रतिनिधित्व प्रदान करना है। आदिवासी मंत्री के स्थान पर आदिवासी विधायक को मंत्री बनाया गया, जो पार्टी की सामाजिक और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को दर्शाता है। रामदास सोरेन झारखंड आंदोलनकारी रहे हैं, अलग राज्य के लिए संघर्ष करते हुए वे जेल भी गये थे|
- Kolhan क्षेत्र का राजनीतिक समीकरण
कोल्हान की 14 सीटों में से पूर्वी सिंहभूम के 4 विधायक झामुमो से हैं, और एक निर्दलीय सरयू राय हैं। जमशेदपुर पश्चिम से बन्ना गुप्ता कांग्रेस पार्टी से हैं। भाजपा यहाँ शून्य पर है, लेकिन झामुमो को चंपाई सोरेन और BJP का प्रभाव पता है। पार्टी को डर है कि चंपाई के करीबी विधायक भाजपा में शामिल हो सकते हैं, जिससे पार्टी की स्थिति कमजोर हो सकती है।
- पीएम मोदी की सभा के बावजूद भाजपा को केवल 800 वोटों की बढ़त !
लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के लिए घाटशिला विधानसभा क्षेत्र एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा। प्रधानमंत्री मोदी की बड़ी सभा के बावजूद, भाजपा को यहाँ महज 800 वोटों की बढ़त हासिल हो सकी, जबकि अन्य विधानसभा सीटों पर अंतर 50 हजार से अधिक का था। इस स्थिति ने झामुमो को चुनावी रणनीति में बदलाव करने के लिए प्रेरित किया।
- जिलाध्यक्ष को बनाया मंत्री, क्यूंकि विधायकों के टूटने का ख़तरा !
रामदास सोरेन झामुमो के पूर्वी सिंहभूम जिला अध्यक्ष हैं और स्थानीय विधायकों के साथ उनका अच्छा सामंजस्य है। पार्टी ने चुनाव से पहले उनके मंत्री बनने से पार्टी की टूट को रोकने और स्थिरता बनाए रखने की कोशिश की है।
- भौगोलिक दृष्टिकोण और राजनीतिक संतुलन
रामदास सोरेन का निवास स्थान जमशेदपुर के घोड़ाबंधा में है, जो झारखंड की राजनीति का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। घाटशिला विधानसभा क्षेत्र बहरागोड़ा और जुगसलाई विधानसभा सीटों से निकटता रखता है, जिससे यह एक राजनीतिक पॉवर सेंटर के रूप में उभरा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के पड़ोसी होने के नाते, रामदास सोरेन की राजनीतिक गतिविधियाँ और उनके संबंध स्थानीय राजनीति पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
पार्टी की रणनीति का हिस्सा
रामदास सोरेन को मंत्री पद पर नियुक्त करके, झामुमो ने चुनावी दृष्टिकोण से कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया है। घाटशिला विधानसभा सीट को मंत्री पद देकर, पार्टी ने न केवल आदिवासी समुदाय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया, बल्कि राजनीतिक संतुलन भी स्थापित किया है। संभवतः यह निर्णय बहरागोड़ा, जुगसलाई, और पोटका विधानसभा क्षेत्रों में JMM पार्टी के राजनीतिक प्रभाव को सुनिश्चित करने में मदद करेगी|
आदिवासी वोट बैंक
इस नियुक्ति ने झामुमो की रणनीति को स्पष्ट रूप से दर्शाया है कि पार्टी स्थानीय राजनीति और भौगोलिक संतुलन को बनाए रखने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है। रामदास सोरेन की नियुक्ति ने न केवल आदिवासी वोट बैंक को सशक्त किया है, बल्कि पार्टी की चुनावी रणनीति को भी मजबूती प्रदान की है। यह निर्णय झारखंड की राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए किया गया है, ताकि पार्टी की चुनावी संभावनाओं को सुनिश्चित किया जा सके और राजनीतिक दबाव को नियंत्रित किया जा सके।
रामदास सोरेन की मंत्री पद पर नियुक्ति झामुमो की राजनीतिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसने पार्टी के भीतर के संघर्ष, आदिवासी समुदाय की राजनीति, और भौगोलिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित निर्णय लिया है। इस नियुक्ति के माध्यम से, झामुमो ने न केवल अपने भीतर के विवादों को सुलझाने की कोशिश की है, बल्कि आगामी चुनावों के लिए एक मजबूत आधार भी तैयार किया है।
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