भारत में चुनावी प्रक्रिया के दौरान एक विकल्प ‘NOTA’ यानी ‘नन ऑफ़ द एबव’ {None Of The Above} का बटन पेश किया गया था, ताकि मतदाता उन उम्मीदवारों को रिजेक्ट कर सकें जिन्हें वे उपयुक्त नहीं समझते। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि, अगर 1000 में से 900 वोट NOTA को मिलते हैं, तो क्या उस निर्वाचन क्षेत्र में दोबारा चुनाव कराए जाएंगे? इस सवाल के जरिए नोटा की प्रासंगिकता और उसके प्रभाव पर चर्चा को फिर से जीवंत कर दिया है।
NOTA का मतलब और इसकी शुरुआत
नोटा का मतलब None Of The Above यानी ‘इनमें से कोई नहीं’ होता है। इसका उद्देश्य मतदाताओं को यह विकल्प देना था कि अगर चुनाव में खड़े हुए उम्मीदवारों में से कोई भी उन्हें उपयुक्त नहीं लगता, तो वे सबको Reject कर सकते हैं। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इस बटन को EVM में लागू करवाया था, ताकि Elections में एक सिस्टमिक बदलाव लाया जा सके और पार्टियों पर साफ-सुथरे उम्मीदवारों को खड़ा करने का दबाव बने।
सुप्रीम कोर्ट का सवाल और उसकी प्रासंगिकता:
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सवाल किया कि यदि NOTA को बहुमत Vote मिलते हैं, तो क्या उस निर्वाचन क्षेत्र में फिर से चुनाव कराए जाएंगे? वर्तमान नियमों के अनुसार, ऐसा नहीं होता। अगर नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, तो चुनाव का परिणाम बदलता नहीं है, बल्कि जिस भी उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिले होते हैं, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। इससे नोटा का प्रभाव चुनाव परिणाम पर लगभग शून्य हो जाता है।
NOTA के फायदे और सीमाएं
NOTA का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह मतदाताओं को असंतोष व्यक्त करने का मौका देता है। अगर किसी भी उम्मीदवार के खिलाफ व्यापक असंतोष होता है, तो लोग NOTA का बटन दबाकर उसे जाहिर कर सकते हैं। लेकिन NOTA की सबसे बड़ी खामी या विसंगति यह है कि इसका चुनाव के अंतिम परिणाम पर कोई सीधा असर नहीं पड़ता।
Criminal रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार और NOTA का महत्व
भारत में चुनावों के दौरान कई बार ऐसे उम्मीदवार खड़े होते हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होते हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014 के लोकसभा चुनावों में 30% विजेता ऐसे थे जिनके खिलाफ आपराधिक रिकॉर्ड थे, जो 2019 में बढ़कर 43% हो गए। ऐसे में, नोटा एक ऐसा विकल्प है जो आपको एक ‘क्लीन’ उम्मीदवार के चयन में मदद कर सकता है।
NOTA का असली मकसद ?
सुप्रीम कोर्ट ने नोटा का ऑप्शन लाते समय उम्मीद की थी कि इससे राजनीतिक पार्टियों पर अच्छे और स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार खड़े करने का दबाव बनेगा। लेकिन जब तक नोटा का परिणाम पर कोई ठोस असर नहीं पड़ता, तब तक इसके जरिए सिस्टमिक बदलाव की संभावना कम है।
NOTA का बटन दबाना आपकी असंतुष्टि को जाहिर करने का एक तरीका हो सकता है, लेकिन इसका चुनावी परिणाम पर सीमित प्रभाव है। अगर आप वाकई में बदलाव चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि आप उम्मीदवारों की छानबीन करें और सोच-समझकर अपने वोट का इस्तेमाल करें। आपका वोट महत्वपूर्ण है, इसलिए इसे व्यर्थ न जाने दें।
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