जागो समाज: लड़कियों की सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझो…
पिछले कुछ दिनों से देश भर में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं उठ रही हैं। और यह चिंताएं जायज़ हैं, क्योंकि हर घर में माँ, बहन, और बेटियां होती हैं। देश के विभिन्न राज्यों में लड़कियों के साथ बलात्कार और हत्या के मामले सामने आ रहे हैं। जब लड़कियां अपने ही शहरों में सुरक्षित नहीं हैं, तो माता-पिता कैसे अपनी बेटियों को दूर किसी और शहर में पढ़ाई या नौकरी के लिए भेजने का साहस कर सकते हैं? और यह तब हो रहा है जब हमारी सुरक्षा व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।
पिछले कुछ सालों में समाज में लड़कियों को लेकर मानसिकता में सुधार देखने को मिला है। लोग अपनी बेटियों को आजादी देने के बारे में सोच रहे हैं, उन्हें समाज में अपना नाम रोशन करने का मौका देने के लिए तैयार हो रहे हैं। लेकिन क्या ऐसी घटनाओं के बाद कोई भी अपने बच्चों को बाहर भेजकर चैन की नींद सो सकता है?
तो क्या इसका मतलब यह है कि हम अपनी बेटियों को घर में बंद कर लें और उनकी आजादी छीन लें, सिर्फ इसलिए कि बाहर कोई दरिंदा अपनी हवस में बैठा है? क्या उनकी सफलता को रोक देना चाहिए, क्योंकि लड़की होना ही एक “अपराध” है?
सारांश न्यूज़ समाज के हर व्यक्ति से सवाल पूछना चाहता है—क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी घटनाओं के खिलाफ एक सख्त कानून बनना चाहिए? क्या हम अपनी बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में बार-बार असफल रहेंगे? क्या सुरक्षा के नाम पर उन्हें घर की चार दीवारी में कैद रखेंगे? क्या यह हमारी असफलता नहीं है?
आज के दौर में जहां सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की बातें सुनी जाती हैं, क्या उनका कोई कर्तव्य नहीं है इन घटनाओं पर आवाज़ उठाने का? पुणे, जमशेदपुर, और कोलकाता जैसे शहरों में पिछले चार दिनों में चार दिल दहला देने वाली घटनाएं सामने आई हैं। यह किसकी नाकामी है?
समाज के हर कोने में बैठे लोगों, यह वक़्त है जागने का, अपनी जिम्मेदारी को समझने का। नहीं तो यह सवाल हमेशा हमें सताते रहेंगे—क्या हम अपनी बेटियों की सुरक्षा कर पाएंगे या उन्हें हमेशा चार दीवारी में कैद रखेंगे?
जागो, क्योंकि अगर आज नहीं जगे तो कल शायद बहुत देर हो जाएगी।